वो शख़्स धीरे धीरे साँसों में आ बसा है

वो शख़्स धीरे धीरे साँसों में आ बसा है
बन के लकीर हर इक, हाथों में आ बसा है

वो मिले थे इत्तेफ़ाक़न हम हंसे थे इत्तेफ़ाक़न
अब यूं हुआ के सावन आँखों में आ बसा है

काफ़ी थे चंद लम्हे तेरे साथ के सितमगर
ये क्या किया है तूने ख़्वाबों में आ बसा है

अब तो वो ही है साहिल, तूफ़ान भी वो ही है
कुछ इस तरह से दिल की मौजों में आ बसा है

उम्मीद-ओ-हौंसला भी, रिश्ता भी है, ख़ला भी
वो ज़िंदगी के सारे नामों में आ बसा है

कुछ रफ़्ता रफ़्ता आता, मुझको पता तो चलता
वो शख़्स एक दम ही आहों में आ बसा है

उस की पहुंच गज़ब है, वो देखो किस तरह से
दिन में भी आ बसा है रातों में आ बसा है

क्या बोलता हूं ‘रोहित’, के पूछती है दुनिया
वो कौन है जो तेरी बातों में आ बसा है

रोहित जैन
08-02-2008

मेरे वजूद को यूँ तेरे काम आना है

मेरे वजूद को यूँ तेरे काम आना है
जिगर का लख़्त लख़्त होंठ पर सजाना है

न जाने क्या कहा है शम्अ ने परवाने से
के अब उसे तो जल के ख़ाक ही हो जाना है

जो तूने कह दिया तो तर्क़ेमोहब्ब्त कर ली
जज़ा में अब भले ही हमको दिल जलाना है

तलाशेयार ने मुझको किया कहाँ से कहाँ
चले थे सोच के कि ज़िंदगी को पाना है

मुझे भी होने लगी अब तो चाह जन्नत की
मुझे भी ये फ़रेब आसमाँ का खाना है

मुझे तो प्यार है उदूं के इरादों से भी अब
तेरी उल्फ़त में भला लग रहा ज़माना है

मेरा चिराग़ तो कब का ये बुझ गया था मगर
तेरी निस्बत में इसे राह पर सजाना है

बुला रहे हैं मुझे मैक़दा भी मस्जिद भी
कहीं भी जाऊँ वहाँ तेरा अक्स पाना है

उफ़क़ से संगेआफ़ताब ज्यों ही आयेगा
हर एक रात को टुकड़ों में बिखर जाना है

जो वक़्त यूँ तो रेंगता है मेरी साँसों में
जो तेरा साथ हो तो पल में गुज़र जाना है

न जाने कब ये कटे पाप, हो सेहर ‘रोहित’
तुझे भी यूँ ही तब तलक तो जिये जाना है

रोहित जैन
17-12-2008

कोई सूरज हमारी ताक में है

पसेज़ुल्मत कोई सूरज हमारी ताक में है
इसी उम्मीद का दम अब हमारी ख़ाक में है

नहीं है ख़ौफ़ किसी ज़ुल्म का हमें यारों
आओ देखें के जिगर कितना उस सफ़्फ़ाक में है

जो बदलती है रवानी तो बदल ले कौसर
रुख़ बदलने का हुनर आपके तैराक में है

वजूद अब भी सलामत है जान लो प्यारे
तो क्या हुआ के लिबासेबदन ये चाक में है

बुलंद कितनी भी स्याही फ़रेब की हो यहाँ
इसे पढ़ने का तजुर्बा दिलेख़ाशाक में है

उन्हे हैरत है ग़मेज़िंदगी से खुश हूँ मै
मज़ा अलग ही मिंया दर्द की खुराक में है

ना बुरा मानिये ‘रोहित’ की किसी बात का आप
हज़ार दर्द दिलेबेचारा-ए-बेबाक में है

रोहित जैन
26-11-2008

पसेज़ुल्मत == Beyond the Darkness
सफ़्फ़ाक == Cruel
कौसर == River of Heaven
दिलेख़ाशाक == Destroyed Heart

यहाँ पर

जाँ देके हमने दिल को सँभाला है यहाँ पर
कुछ ऐसे उसकी याद को टाला है यहाँ पर

अब सोचते हैं मौत में ही चैन पायेंगे
कुछ मार ज़िंदगी ने यूँ ड़ाला है यहाँ पर

दम घुट रहा था मेरा अंधेरों में प्यार के
दिल में ग़मों का ही तो उजाला है यहाँ पर

मरने के इंतेज़ार में जीते हैं देखिये
कैसा ग़ज़ब ये खेल निराला है यहाँ पर

बस याद कर रहा हूँ मै जलवा-ए-यार को
बे-बादा मस्तियों को यूं पाला है यहाँ पर

ऐ नाख़ुदा तू साहिलों से दूर रख मुझे
हर शख़्स वहाँ ड़ूबने वाला है यहाँ पर

इतना नहीं था लाल ये रंगेहिना कभी
मसल किसी का दिल कहीं ड़ाला है यहाँ पर

ना चाँद ही ड़ूबा कहीं ना ही हुई है रात
‘रोहित’ तेरा ही दिल है जो काला है यहाँ पर

रोहित जैन
31-12-2008

यह ग़ज़ल Webdunia पर भी प्रकाशित हुई है

Published in: on जनवरी 28, 2009 at 7:58 अपराह्न  Comments (4)  

यही मंज़र यहाँ पे ताहद-ए-नज़र होंगे

यही मंज़र यहाँ पे ताहद-ए-नज़र होंगे
टूट के बिखरे से तूफ़ान में ये घर होंगे

जो अभी उड़ रहा है देख आसमाँ में कहीं
ज़मीं पे आते ही क़तरे हुए से पर होंगे

जो जहां को पता चल जाए तू है काँच का बुत
बस उसी पल सभी के हाथ में पत्थर होंगे

तेरे एहसास की मिट्टी का है जहाँ भी महल
तू ज़रा देखना बादल वहीं पे तर होंगे

किसी सय्याद ने पकड़े हैं परिंदे सारे
बड़े ग़मसोज़-ओ-चुपचाप अब शजर होंगे

ये जो खवाबों के जज़ीरे हैं तेरी आँखों में
इन्ही के बीच में अश्क़ों के समन्दर होंगे

ये सभी फूल तमन्ना के बिखर जाएंगे
किसी मज़लूम के जैसे ये दर-ब-दर होंगे

जिनकी तारीख़ ने परवाह नहीं की है कभी
उन्ही के हाथ से सँवरे हुए मंज़र होंगे

ये तो मालूम था के एक दिन फ़ना होंगे
नहीं मालूम था ग़ारत हम इस क़दर होंगे

वो इन्क़िलाब की बातें न करें बोल उन्हे
कोई सुन लेगा तो मक़्तल पे उनके सर होंगे

जिन्हे तू मान रहा है ख़ुदा यहाँ ‘रोहित’
उन्ही के नाम पर तू देखना क़हर होंगे

रोहित जैन
22-12-2008

ताहद = Till the limits

ग़मसोज़ = Immersed in sorrow

जज़ीरे = Islands

मज़लूम = Poor and helpless

ग़ारत = Destroyed

मक़्तल = Stone for cutting head

Published in: on जनवरी 26, 2009 at 10:25 अपराह्न  Comments (5)  

आ तेरे प्यार में तामीर करूँ ताजमहल

Inspired by a nazm by Azmal Sultanpuri sahab…

मै बनूं शाहजहां तू मेरी मुमताज़ महल
आ तेरे प्यार में तामीर करूँ ताजमहल

तू ही उर्दू का अदब और तू ही शेर-ओ-सुख़न
तू ही है गीत-ओ-रुबाई-ओ-क़ता हम्द-ए-ज़हन
तू ही है शेर का अशआर तू मफ़हूम-ए-नज़्म
तू ही महफ़िल तू ही शम्मा तू मोहब्बत की बज़्म
मै बनूं ‘मीर’-ओ-‘ग़ालिब’ तू बने मेरी ग़ज़ल
आ तेरे प्यार में तामीर करूँ ताजमहल

तू चमेली तू ही चम्पा तू गुलाब-ओ-गुलनार
तू ही नरगिस तू ही शहनाज़-ओ-हिना हरसिंगार
रातरानी भी तू ही और तू जूही की कली
मोगरे की तू ही ख़ुशबू तू मोतिये की हँसी
मै बनूं एक चमन तू हो मेरा फूल कँवल
आ तेरे प्यार में तामीर करूँ ताजमहल

तू ही लैला तू ही शीरीं तू ही हो हीर मेरी
क़ैस-ओ-फ़रहाद-ओ-राँझे सी हो तस्वीर मेरी
तू ही सोहनी का हो चेहरा मै ही महिवाल तेरा
तू ही हो श्याम की राधा मै ही गोपाल तेरा
मै बनूं राम तू बन जाये सिया का आँचल
आ तेरे प्यार में तामीर करूँ ताजमहल

तू वो जुगनू है के सूरज भी जिस से शरमाये
तू वो तितली है जो ख़ुशरंग फ़िज़ा कर जाये
तू ही वो हश्र है चश्म-ए-ग़ज़ाल हैं जिस से
अन्दलीबों कि हँसी तेरी सदा के किस्से
तू ही बुलबुल तू ही है चकोर पपीहा कोयल
आ तेरे प्यार में तामीर करूँ ताजमहल

तू ही मौसम तू ही वादी तू बहार-ए-गुलशन
तू ही पतझड़ तू ही बरखा तू ही सर्दी की चुभन
तू ही झरना तू ही नदिया तू ही सागर की लहर
तू ही चंदा तू ही सूरज तू ही तारों का शहर
तू ही बिजली तू ही पानी तू हवा ये बेकल
आ तेरे प्यार में तामीर करूँ ताजमहल

रोहित जैन
22-23/12/2008

तामीर = Plan
सुख़न = Poetry
रुबाई, क़ता, क़ता, हम्द = Forms of Urdu Poetry
अशआर = Couplet
मफ़हूम = Meaning / Essence
चमेली,चम्पा, गुलाब, गुलनार, नरगिस, शहनाज़, हिना, हरसिंगार, रातरानी, जूही, मोगरा, मोतिया, कँवल = Types of Flowers
हश्र = Limit
चश्म-ए-ग़ज़ाल = Eyes of Deer
अन्दलीब = Nightingale
चकोर, पपीहा, कोयल = Types of Birds

फूल पत्थर पर खिलाकर देखिये

फूल पत्थर पर खिलाकर देखिये
बूँद् में सागर छिपाकर देखिये

कितना आसां है जहां को कोसना
ख़ुद से ख़ुद को ही लड़ाकर देखिये

हाथ ही अब तक मिलाते तुम रहे
दिल से अब दिल को मिलाकर देखिये

कितने खुश हो मुज़लिमों को लूटकर
अपनी दुनिया को लुटाकर देखिये

आप जो औरों से कहते हैं करो
आप भी इक मर्तबा कर देखिये

इस जहां से आप करते हैं सवाल
अपना ईमां भी जगाकर देखिये

आज तक सब की दुआ लेते रहे
आप भी कोई दुआ कर देखिये

कब तलक ओढ़े रहोगे चाँदनी
थोड़ी कालिख भी लगाकर देखिये

पास जब तेरे तेरी माँ की दुआ
तो ख़ुदा को आज़माकर देखिये

बस करो रोना ये हर इक बात पर
दर्द को अपनी दवा कर देखिये

फ़ैसला ये वक़्त कर देगा मियां
मत इसे यूँ मुँह चुराकर देखिये

वो ख़ुदा सुन लेगा तेरी भी दुआ
हाथ बस दिल से उठाकर देखिये

आँसुओं का मोल मोती है जनाब
आप दो बूँदें गिराकर देखिये

अब तलक समझा मुक़द्दर को ख़ुदा
अब तो ‘रोहित’ ख़ूं जलाकर देखिये

रोहित जैन
02-11-2008

 
 
 
Published in: on नवम्बर 28, 2008 at 6:44 अपराह्न  Comments (4)  

मोहब्बत में

कुछ ऐसे इश्क़ का धोखा मिँया खाया मोहब्बत में
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाया मोहब्बत में

ये मेरा पैर मेरे बस में कब आया मोहब्बत में
नहीं गुमराह होकर राह पा पाया मोहब्बत में

जुनूं जागा जो उसको पा के जब अपना बनाने का
हर इक चादर से बाहर पाँव फैलाया मोहब्बत में

उसे खोकर भटकता हूँ मै बहरेज़िंदगी में अब
बताओ कौन तन्हा पार जा पाया मोहब्बत में

ये मत पूछो के हमको क्या मिला राहेमोहब्बत पर
पिये आँसू हैं हमने और ग़म खाया मोहब्बत में

ज़माने भर में है रुसवा तो इसमें फ़र्क़ ही क्या है
हुआ बदनाम तो क्या नाम तो पाया मोहब्बत में

नहीं हैं वो मगर इक याद तो है साथ में अपने
कम-अज़-कम इतना तो ‘रोहित’ ने कमाया मोहब्बत में

रोहित जैन
21-11-2008

Published in: on नवम्बर 26, 2008 at 10:32 पूर्वाह्न  Comments (1)  
Tags: , , , , , , , , , ,

दास्तां लिख रहा हूँ पानी पर

हार जाने की कामरानी पर               
दास्तां लिख रहा हूँ पानी पर

आपने दिल मेरा जो तोड़ा है
शुक्र करता हूँ मेहरबानी पर

कुछ निशां देखता हूँ मै अपने
आपकी बेनिशां निशानी पर

लुत्फ़ क्या क्या मिला है क्या बोलूं
ज़ायकेमर्ग़ेनागहानी पर                   

जो अभी तक नहीं कही तुमने
रो रहा हूँ उसी कहानी पर

लो छाँव अब शजर ने मांगी है        
शम्स की सोज़ेबेकरानी पर            

लो अहमकाना हो गई है ख़िरद       
लो इश्क़ आ गया रवानी पर

ये इश्क़ है या है फ़रेबेक़ज़ा         
बात अटकी है दर्मियानी पर

निसार जानोदिल किये हमने
तेरी नज़रों की हुक्मरानी पर        

अहलेदुनिया है और है ‘रोहित’        
कैसा उतरा है तुर्कमानी पर         

रोहित जैन
11-11-2008

कामरानी = Success
ज़ायका – Pleasure
मर्ग़-ए-नागहानी – Sudden Death
शजर – Tree
शम्स – Sun
सोज़ – Heat
बेकरानी – Limitless/unbound
अहमकाना – Foolish
ख़िरद – Wisdom
फ़रेबेक़ज़ा – Illusion of Death
हुक्मरानी – Rule
अहलेदुनिया – People of the world
तुर्कमानी – Rebel

शायद

हमारी इब्तेदा ही है हमारी इंतेहा शायद
मुसीबत में भी अब आने लगा हमको मज़ा शायद

मोहब्बत बन गई है जान-ओ-दिल का मस’अला शायद
के हम से आशना होता है वो नाआशना शायद

जो रातों को जगे रहना हुआ है मशग़ला शायद
मोहब्बत में हुआ करता है ये ही सिलसिला शायद

य़ही इक सोच लेके हम चले जाते हैं दुनिया से
हमारा भी कोई देखा करेगा रास्ता शायद

ख़ता पर ग़ौर तक न कर सकें उनसे ग़िला कैसा
कहीं किस्मत में ही अपने लिखी थी ये सज़ा शायद

नहीं ये आँधियां मासूम हैं इनसे ना कुछ बोलो
ख़ुद हम अपने ही हाथों से बुझा बैठे दिया शायद

सितम कितने किये हैं आप ने मज़लूम आशिक़ पर
वो फिर भी कर रहा है देखिये तो मरहबा शायद

जो करते हैं सितम हमपे ख़ुदा से मूंदकर आँखें
उन्हे भी याद आयेगा किसी दिन तो ख़ुदा शायद

लो अब तुम भी लगे हो मुस्कुराने देखकर हमको
तुम्हे भी अब समझ आने लगा है माजरा शायद

वही मय्यत में ‘रोहित’ की नहीं आयेंगे के जिनको
दिया करता था वो लम्बी उमर की बद्दुआ शायद

रोहित जैन
31-10-2008

मशग़ला – Preoccupation

Published in: on नवम्बर 17, 2008 at 11:07 अपराह्न  Comments (4)  
Tags: , , , , , , , , ,