मिजाज़ेज़िंदगी है काफ़िराना
कभी बातों में इसकी तुम न आना
कभी होता था मै भी आशिक़ाना
हुआ क्या के हुआ सब मर्सियाना
ज़िंदगी क्या है मुझसे पूछ्ते हो
साँस लेने का छोटा सा बहाना
ये शाखेदिल बड़ी नाज़ुक है लोगों
बनाओगे कहां तुम आशियाना
नज़र में तो अलग सा ही बयां है
कहां सीखा है ये बातें बनाना
मुझे मालूम है मेरी कमी है
नहीं आता मुझे दिल का दुखाना
बड़ी ख़ुशरंग है आबोहवाएं
करो तबियत को तुम भी आशिक़ना
मै नज़रें ना मिला पाया किसी से
जब उसने चाहा मुझको आज़माना
वो मुझको देखते हैं आज ऐसे
के जैसे शक़्ल ही हो मुजरिमाना
उलझकर रह गया है ज़िंदगी में
ये ‘रोहित’ था कभी जो शायराना
रोहित जैन
29-08-2008