मिजाज़ेज़िंदगी है काफ़िराना

मिजाज़ेज़िंदगी है काफ़िराना
कभी बातों में इसकी तुम न आना

कभी होता था मै भी आशिक़ाना
हुआ क्या के हुआ सब मर्सियाना

ज़िंदगी क्या है मुझसे पूछ्ते हो
साँस लेने का छोटा सा बहाना

ये शाखेदिल बड़ी नाज़ुक है लोगों
बनाओगे कहां तुम आशियाना

नज़र में तो अलग सा ही बयां है
कहां सीखा है ये बातें बनाना

मुझे मालूम है मेरी कमी है
नहीं आता मुझे दिल का दुखाना

बड़ी ख़ुशरंग है आबोहवाएं
करो तबियत को तुम भी आशिक़ना

मै नज़रें ना मिला पाया किसी से
जब उसने चाहा मुझको आज़माना

वो मुझको देखते हैं आज ऐसे
के जैसे शक़्ल ही हो मुजरिमाना

उलझकर रह गया है ज़िंदगी में
ये ‘रोहित’ था कभी जो शायराना

रोहित जैन
29-08-2008

चेहरों पे चेहरा

सेहर है या कोई सहरा है लोगों
सभी बातों पे क्यों पहरा है लोगों

जहां कश्ती मेरी आकर रुकी है
समन्दर और भी गहरा है लोगों

हज़ारों आईने हैं इस जगह पर
कहां खोया मेरा चेहरा है लोगों

जो कहता है के सुनता हूं सभी की
असल में वो ही तो बहरा है लोगों

लगामें बस लबों तक ही नहीं हैं
यहां एहसास पर पहरा है लोगों

दिखे कैसे यहां पर कुछ किसी को
निगाहों में भरा कोहरा है लोगों

कहे ‘रोहित’ ये सच है सिर्फ़ सच है
लगा चेहरों पे इक चेहरा है लोगों

रोहित जैन
29-08-2008