इक जाम-ए-जुनूं को लबों से लगाया है

इक जाम-ए-जुनूं को लबों से लगाया है
दिल को इक नये ग़म का नशा कराया है

ये कैसी हलचल मची है महफ़िल में
क्या कोई चाक जिगर महफ़िल में आया है

रो रही है रात चांद से छुपकर देखो
साज़-ए-दिल किस ख़ाकजां ने बजाया है

मत कहो किसी भी बच्चे को तुम यतीम
हर बच्चे के सर पे खुदा का साया है

दिल तारीक से तारीकतर हुआ जाता है
कैसी शम्मा है जिसे आपने जलाया है

आज तक तो कभी आवाज़ नहीं सुनी हमने
अब आपने हमें किस तौर ये बुलाया है

तीर-ए-इश्क़ की तासीर हाय क्या कहें
ज़ख़्म सीने पे उम्र भर सजाया है

मुगालते में रहे मुबालग़े के पीछे
ये समझते रहे नहीं वो पराया है

वो जाने किन हालातों से गुज़रा आने में
तुझे खुदा बना के जो तेरे दर पे आया है

लाल-ओ-जवाहर में उसको ना भुला देना
उस ही की रहमतों से ये घर सजाया है

वो सिर्फ़ महबूब है खुदा हो नहीं सकता
उसकी इबादत से तूने दिल को बहलाया है

रोहित जैन
19/12/2007

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