नया हुनर पाने का वक़्त आया है

नया हुनर पाने का वक़्त आया है
उस को भुलाने का वक़्त आया है
आओ बुझा दें पुरानी शम्मों को
नई शम्में जलाने का वक़्त आया है
क़ैद-ए-ज़ुल्फ़ से रिहा होकर
परिंदे के उड़ जाने का वक़्त आया है
आँखों ने छुपा रखी थी अब तक
वो शबनम गिराने का वक़्त आया है
रुको मै लाता हूं तोड़कर तारे
तेरा आंचल सजाने का वक़्त आया है
उस चांद से कह दो ज़रा ठहरे
ग़ज़ल गुनगुनाने का वक़्त आया है
ज़रा दिल को कोई ख़बर दे दो
नये ज़ख़्म खाने का वक़्त आया है
किस ने सोचा था ये वक़्त आयेगा
ग़रेबां बचाने का वक़्त आया है
आओ ज़िंदगी ढ़ूंढ़ लायें ज़रा
आज हंसने-हंसाने का वक़्त आया है
लो हटा दिया हुस्न ने परदा
क़यामत ढ़ाने का वक़्त आया है
लो फिर आ गया है परवाना
ख़ुद को जलाने का वक़्त आया है
बहुत सुन लिये तुम्हारे किस्से
ख़ुद की सुनाने का वक़्त आया है
वो गया छुड़ाकर मेरा हाथ
मेरे ड़गमगाने का वक़्त आया है
लो फिर से रूठ बैठा कोई
फिर से मनाने का वक़्त आया है
मुक़द्दर तूने किया राज बहुत
तुझको हराने का वक़्त आया है
गुलों ने कहा अपनी खुशबूओं से
बहार के आने का वक़्त आया है
उफ़ उस ने झुका ली फिर आँखें
मै-ओ-पैमाने का वक़्त आया है

रोहित जैन
15-10-2007

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