उफ़क़ को देखकर ऐसा गुमां था
ज़मीं की दोस्ती में आसमां था
कोई उलझन नहीं थी इस से बढ़कर
वो मेरा था मगर मेरा कहां था
हुनर ही था, इसे क्या और कहिये
बड़ी तहज़ीब से नामेहरबां था
ज़मीर आया मेरी आँखों के आगे
वगरना मै भी उसका राज़दां था
यकीं तो था मुझे पर कुछ कमी थी
अजब सा फ़ासिला इक दर्मियां था
ख़ता थी, हाँ ख़ता ही थी वो मेरी
मुझे था प्यार और बेइन्तिहां था
ज़हन अहमक़ ज़बां नादां थी उसकी
मगर दिल से बुरा ‘रोहित’ कहां था
रोहित जैन
07-03-2011
उफ़क़ – Horizon
नामेहरबां – Rude
वगरना – Otherwise
अहमक़ – Foolish/Immature
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