बादलों ने करीं कुछ आसमाँ में साज़िशें हैं
आजकल देखो तभी तो पत्थरों की बारिशें हैं
ख़ुश्क़ गुमसुम और बियाबाँ सा चमन का हाल है
आजकल इस चमन में ख़ारोकली की रंजिशें हैं
अब खुशी की और अमन की कौन करता है दुआ
आजकल तो आँसुओं की आ रहीं फ़रमाइशें हैं
किस तरफ़ जाऊं, बचूं कैसे बताओ ये मुझे
के बलाओं की मेरे चारों तरफ़ अब गर्दिशें हैं
तू न ड़र ‘रोहित’ किसी भी ख़्वाब की दस्तक पे यूँ
ये तो ग़ालिब ने भी माना के हज़ारों ख़्वाहिशें हैं
रोहित जैन
04-10-2008
बहुत बढ़िया..
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/